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MP NEWS:एमपी का यह लड़का कभी उधारी के बल्ले से खेला करता था क्रिकेट आज कडी मेहनत से IPL में मिला मौका

बुलंदसोच 9 फरवरी रीवा । IPL-2022 मेगा ऑक्शन में दोस्तों से बल्ला उधार लेकर क्रिकेट सीखने वाले सतना के प्रद्युम्न तिवारी के लिए भी बोली लगेगी। उनका बेस प्राइस 20 लाख रुपए रखा गया है। बाएं हाथ के फास्ट बॉलर प्रद्युम्न फिलहाल DDCA (दिल्ली एंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन) के लिए खेलते हैं। कभी क्रिकेट खेलने

बुलंदसोच 9 फरवरी रीवा ।

IPL-2022 मेगा ऑक्शन में दोस्तों से बल्ला उधार लेकर क्रिकेट सीखने वाले सतना के प्रद्युम्न तिवारी के लिए भी बोली लगेगी। उनका बेस प्राइस 20 लाख रुपए रखा गया है। बाएं हाथ के फास्ट बॉलर प्रद्युम्न फिलहाल DDCA (दिल्ली एंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन) के लिए खेलते हैं।

कभी क्रिकेट खेलने के लिए नहीं थी खुद की किट दोस्तों से लिए उधार

कहते हैं कि यदि इसांन के होसले बुलंद हो और ईमानदारी से अपने लक्ष्य के लिए लगातार प्रयास किए जाए तो सफलता निश्चित हैं। समय और संयम का तालमेल इस सफर मेंं बेहद जरुरी हैं। क्षेत्र चाहे शिक्षा का हो या खेल या फिर राजनीति का हो इन सभी में संघर्ष सिर्फ एक व्यक्ति समझ सकता हैं। वे खुद जिन्होंने इस मुकाम के लिए परिश्रम किया हैं। वर्ना समाज मेंं बैठे लोग संघर्ष को तो नही समझते बस हार और जीत का मैडल थमाकर चले जाते है ।
छोटे गांव से IPL ऑक्शन तक पहुंचने वाले प्रद्युम्न की कहानी संघर्षों से भरी है। एक समय ऐसा भी आया, जब उन्हें लगा कि सब कुछ खत्म हो गया। वह समय था उनके दादा का निधन, जो चाहते थे कि पोता क्रिकेटर बने। दादा के जाने के साथ ही सपना भी टूटने लगा, पर चाचा ने संभाल लिया। पढ़िए प्रद्युम्न के यहां तक पहुंचने की कहानी…
प्रद्युम्न का जन्म 14 दिसंबर 2000 को रीवा जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर बकिया गांव (सतना) में हुआ। पिता नारायण तिवारी छोटे से किसान हैं। बेटे को बड़े स्कूल में पढ़ाने के लिए पैसा नहीं था। इसलिए उन्होंने प्रद्युम्न को सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय गुरुकुल में भेजा।
प्रद्युम्न बचपन से ही क्रिकेट का माहिर खिलाड़ी बन गया। गुरुकुल में ही क्लास एक से 12वीं तक की पढ़ाई की। पोते की क्रिकेट में दिलचस्पी देख दादा ने उसे भोपाल की क्रिकेट एकेडमी भेज ​दिया। यहां वो दोस्तों की किट से ही क्रिकेट खेलने लगा। शुरुआत में MP से कई मैच खेले, लेकिन जब सुरक्षित ​भविष्य नहीं दिखा तो दिल्ली की ओर रुख कर लिया।

गांव में प्रद्युम्न तिवारी के पिता नारायण तिवारी


प्रद्युम्न ने बताया कि खेल के लिए हर पल प्रोत्साहन देने वाली मां बचपन में ही गुजर गईं थीं। 2018 में दादा दयानंद तिवारी के निधन के साथ क्रिकेट खेलने का सपना खत्म हो गया था। उस साल चार महीने तक बकिया गांव में अकेले रहा। गांव के ही बच्चों के साथ टेनिस बॉल से क्रिकेट खेला। मेरा मुरझाया चेहरा देख चाचा हरिओम तिवारी (आरक्षक) ने भरोसा दिलाया।
उनके समझाने के बाद 8 माह बाद क्रिकेट को जॉइन किया था। अब प्रद्युम्न की कोचिंग का खर्चा चाचा वहन करते हैं। उन्हें भरोसा है कि भतीजा अपने दादा और मां के सपनों को पूरा करेगा। बस इसी आस में अपनी जमा पूंजी का कुछ हिस्सा हर महीने प्रद्युम्न को भेजकर उसे देश के लिए खेलते देखना चाहते हैं।