कनाडा, 17 जून 2025 | ब्यूरो रिपोर्ट – Buland Soch
कनाडा के अल्बर्टा में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन 2025 उस समय अप्रत्याशित मोड़ पर पहुंच गया, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सम्मेलन का अंतिम दिन छोड़ दिया और वॉशिंगटन के लिए रवाना हो गए। उनके इस कदम ने सिर्फ राजनयिक हलकों में नहीं, बल्कि मध्य-पूर्व में पहले से ही सुलगते संघर्ष को लेकर भी नए संकेत दिए हैं।
लीडर्स की बैठकों में छाया रहा युद्ध और परमाणु संकट का साया
तीन दिवसीय समिट में दुनिया के सात सबसे शक्तिशाली लोकतांत्रिक देशों — अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, इटली और मेज़बान कनाडा — के बीच व्यापार, तकनीक और जलवायु जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई, लेकिन मुख्य फोकस रहा ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव और परमाणु हथियारों का खतरा।
एकजुट स्वर में सभी देशों ने साफ किया कि ईरान को परमाणु शक्ति बनने से हर हाल में रोका जाएगा, और इजराइल को आत्मरक्षा का अधिकार है। हालांकि, रणनीति को लेकर नेताओं के बीच स्पष्ट मतभेद देखने को मिले, खासकर अमेरिका और फ्रांस के बीच।
ट्रम्प का तीखा पलटवार: ‘मैं सीजफायर के लिए नहीं लौट रहा’
समिट के दूसरे दिन तक सब सामान्य रहा, लेकिन जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यह संकेत दिया कि ट्रम्प मध्य-पूर्व में संभावित सीजफायर डील के लिए जल्द वापसी कर रहे हैं, तो ट्रम्प ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
अपने प्लेटफॉर्म Truth Social पर उन्होंने लिखा:
“मैं सीजफायर के लिए नहीं लौट रहा। बात उससे कहीं बड़ी है। ईरान को अपने पूरे परमाणु कार्यक्रम को खत्म करना होगा।”
इसके बाद उन्होंने तेहरान के नागरिकों को ‘शहर खाली करने’ की चेतावनी भी दी — जिसे विश्लेषक संभावित सैन्य कार्रवाई की ओर इशारा मान रहे हैं।
सम्मेलन में दिखी कूटनीतिक फूट
G7 का पारंपरिक संयुक्त बयान तो आया, लेकिन ट्रम्प ने उसमें शामिल कुछ अनुभागों से खुद को अलग कर लिया। उन्होंने बयान के कुछ हिस्सों को “कमजोर” करार दिया और आरोप लगाया कि यूरोपीय देश सिर्फ ‘हेडलाइन डिप्लोमेसी’ कर रहे हैं।
वहीं, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा:
“ईरान से बातचीत के लिए प्रस्ताव दिया गया है ताकि संघर्षविराम की प्रक्रिया शुरू की जा सके। हमें युद्ध नहीं, समाधान चाहिए।”
जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने भी संयमित रुख अपनाते हुए कहा कि G7 को एकजुट रहकर चार स्तरों पर काम करना चाहिए — ईरान को परमाणु हथियार से रोकना, इजराइल का समर्थन, तनाव कम करना और राजनयिक अवसरों का उपयोग।
मध्य-पूर्व में जंग जैसे हालात, भारत समेत कई देशों की निकासी योजना
G7 सम्मेलन के दौरान ही ईरान और इजराइल के बीच हवाई हमलों का दौर तेज हो गया।
- इजराइल ने तेहरान, मशहद और इस्फहान में ईरानी सैन्य अड्डों को निशाना बनाया।
- जवाब में ईरान ने 370 से ज्यादा मिसाइलें और ड्रोन लॉन्च किए।
- अब तक दोनों देशों में 500 से अधिक मौतें हो चुकी हैं।
भारत, चीन, अमेरिका, फ्रांस और थाईलैंड ने अपने नागरिकों को निकालने के लिए आपात योजनाएं शुरू कर दी हैं। भारत सरकार ने तेहरान में फंसे 1,200 से अधिक भारतीयों के लिए एयरलिफ्ट मिशन की घोषणा की है।
अमेरिका की अगली चाल: सैन्य कार्रवाई या राजनयिक दबाव?
ट्रम्प की चेतावनी के बाद अमेरिकी रक्षा विभाग (Pentagon) ने चुप्पी बनाए रखी है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक विमानवाहक पोत ‘USS Gerald R. Ford’ को भूमध्य सागर की ओर रवाना किया गया है। अमेरिका के कई सामरिक अड्डों को हाई अलर्ट पर रखा गया है।
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता ने कहा:
“राष्ट्रपति ट्रम्प लगातार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के संपर्क में हैं और स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है।”
क्या G7 अब सिर्फ प्रतीकात्मक मंच बन रहा है?
विशेषज्ञों का मानना है कि G7 जैसे मंचों की प्रासंगिकता तभी बनी रहेगी जब वह वास्तविक संकटों पर सामूहिक रणनीति बना पाएंगे।
“ट्रम्प का एकतरफा रुख G7 की एकता को चुनौती दे रहा है,”
मानते हैं ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक 'फ्रंटलाइन जियोपॉलिटिक्स' के विश्लेषक।