(Buland Soch News – 6 जुलाई 2025)
मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने सरकारी व्यवस्था की निगरानी और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विदिशा जिले में पदस्थ एक कांस्टेबल, जिसे वर्ष 2011 में पुलिस सेवा में भर्ती किया गया था, उसने बीते 12 वर्षों में एक भी दिन ड्यूटी नहीं की — लेकिन इसके बावजूद उसने लगभग 28 लाख रुपये की सैलरी उठा ली। यह हैरान कर देने वाली सच्चाई उस समय सामने आई जब पुलिस विभाग में कर्मचारियों के रिकॉर्ड को डिजिटलाइज किया जा रहा था।
जानकारी के अनुसार, ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उस कांस्टेबल की तैनाती सागर में होनी थी, लेकिन उसने वहां जाने की बजाय सीधा घर लौटने का फैसला किया और अपनी सर्विस बुक स्पीड पोस्ट के जरिए पुलिस लाइन भिजवा दी। हैरानी की बात यह रही कि पुलिस लाइन ने सर्विस बुक को स्वीकार भी कर लिया, लेकिन किसी भी अधिकारी ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि कर्मचारी वास्तव में ड्यूटी पर आ भी रहा है या नहीं। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान, 12 वर्षों तक न तो उपस्थिति रजिस्टर में कोई विसंगति पकड़ी गई, न ही वेतन भुगतान को लेकर कोई सवाल उठा।
इस मामले की पोल तब खुली जब डीजीपी के निर्देश पर पुलिस विभाग का रिकॉर्ड डिजिटल किया जा रहा था और साथ ही लंबे समय से एक ही पद पर जमे हुए कर्मचारियों का तबादला किया जा रहा था। रिकॉर्ड खंगालते वक्त यह विसंगति सामने आई और पूरा विभाग सकते में आ गया। फिलहाल, आरोपी कांस्टेबल को भोपाल पुलिस लाइन में तैनात कर दिया गया है और विभाग ने उससे करीब 1.5 लाख रुपये की रिकवरी भी की है। जांच का जिम्मा एसीपी अंकिता खतारकर को सौंपा गया है, जबकि डीसीपी श्रद्धा तिवारी ने साफ कहा है कि संबंधित अधिकारियों पर भी जांच पूरी होने के बाद सख्त कार्रवाई की जाएगी।
यह मामला सिर्फ एक कर्मचारी की धोखाधड़ी नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की विफलता का परिचायक है। जब एक कांस्टेबल 12 साल तक नदारद रह सकता है और फिर भी वेतन ले सकता है, तो यह दर्शाता है कि निगरानी, हाजिरी और रिपोर्टिंग की व्यवस्थाएं कागज़ों तक सीमित हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह चूक जानबूझकर नजरअंदाज की गई थी या वास्तव में कोई भी जिम्मेदार अधिकारी पूरे समय जागरूक नहीं था?
Buland Soch News का मानना है कि यह मामला एक बड़े प्रशासनिक संकट की ओर इशारा करता है। जरूरी है कि सिर्फ आरोपी कांस्टेबल ही नहीं, बल्कि वे सभी अधिकारी और कर्मचारी भी जांच के दायरे में आएं, जिनकी लापरवाही से यह घोटाला 12 साल तक चलता रहा। यह केवल पैसे की नहीं, भरोसे की भी चोरी है — और अब वक्त है, कि सवाल सिर्फ पूछे न जाएं, बल्कि उनके जवाब भी लिए जाएं।