Friday, July 18, 2025
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शहडोल ड्राई फ्रूट घोटाला:पानी बचाने की चौपाल में 14 किलो ड्राई फ्रूट, 6 लीटर दूध, और 19 हज़ार का बिल — क्या इसी तरह बहेगा ‘विकास’?

रिपोर्टर: Buland Soch ब्यूरो | स्थान: शहडोल, मध्यप्रदेश
📅 तारीख: 11 जुलाई 2025

मध्यप्रदेश के शहडोल ज़िले से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने ‘जल संरक्षण’ की गंभीरता को ‘ड्राई फ्रूट भोज’ में तब्दील कर दिया है।
गोहपारू ब्लॉक के भदवाही ग्राम पंचायत में आयोजित जल चौपाल के दौरान अधिकारी जिस अंदाज़ में संसाधनों का उपयोग कर बैठे, उसने सरकारी योजनाओं की पारदर्शिता और ईमानदारी पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
30 जून को ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ के तहत शहडोल ज़िले के भदवाही पंचायत में एक जल चौपाल का आयोजन किया गया। इसका उद्देश्य था — गांवों में जल स्रोतों की सफाई, जल संरक्षण के प्रति जनजागरूकता और समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करना।

लेकिन कार्यक्रम के बाद जो बिल सामने आया, उसने सोशल मीडिया पर हड़कंप मचा दिया।

👉 बिल में क्या-क्या था?

  • 5 किलो काजू
  • 6 किलो बादाम
  • 3 किलो किशमिश
  • 30 किलो नमकीन
  • 20 पैकेट बिस्कुट
  • 6 लीटर दूध
  • 5 किलो शक्कर
  • और अन्य सामग्री…

कुल बिल: ₹19,010
बिल ग्राम भर्री स्थित गोविंद गुप्ता किराना स्टोर के नाम से जारी किया गया और भदवाही ग्राम पंचायत ने इसे तुरंत मंज़ूरी भी दे दी।

इस जल चौपाल में ज़िला पंचायत सीईओ, कलेक्टर, एसडीएम और अन्य अधिकारी मौजूद थे।
ग्रामीणों को जहां खिचड़ी, पूड़ी और सब्ज़ी परोसी गई, वहीं अधिकारियों के लिए ड्राई फ्रूट्स और विशेष चाय की व्यवस्था की गई।

चौंकाने वाली बात यह रही कि दूध की मात्रा लीटर की जगह किलो में दर्शाई गई — जो बताता है कि न सिर्फ नियमों का उल्लंघन हुआ, बल्कि गंभीर वित्तीय लापरवाही भी की गई।

जब यह मामला तूल पकड़ने लगा, तो जिला पंचायत प्रभारी सीईओ मुद्रिका सिंह ने कहा:

“मैं स्वयं इस कार्यक्रम में मौजूद था, लेकिन मुझे बिल की जानकारी नहीं थी। ये आयोजन ग्राम पंचायत द्वारा किया गया था। अगर कुछ गड़बड़ी हुई है, तो मैं इसकी जांच कराऊंगा।”

हालांकि, यह बयान और भी सवाल पैदा करता है —

  • क्या कार्यक्रम में उपस्थित रहने के बावजूद अफसरों को खर्च का अंदाज़ा नहीं था?
  • क्या बिना समीक्षा के ही ₹19 हज़ार का बिल पास कर दिया गया?

इस कार्यक्रम का उद्देश्य था ग्रामीणों को जल स्रोतों की सफाई में प्रेरित करना, लेकिन खर्च की वास्तविकता देखी जाए तो यह आयोजन विकास नहीं, दिखावा प्रतीत होता है।

जब राज्य के गांव सूखे तालाबों, गंदे कुओं और घटते भूजल स्तर से जूझ रहे हैं, तब अफसरों का ध्यान भोज्य सामग्री पर ज्यादा था।

  1. क्या पंचायतों के सीमित फंड का इस्तेमाल ऐसे आयोजनों के भोज पर उचित है?
  2. क्या सरकारी कार्यक्रमों की ज़िम्मेदारी केवल रस्म अदायगी बन गई है?
  3. क्या अफसरों के लिए जल संरक्षण, सिर्फ “डायट प्लान” बन गया है?

“जल बचाओ अभियान तब सफल होगा,
जब अफसर काजू-बादाम छोड़कर योजनाओं की गहराई समझेंगे।
जब गांव के सूखे तालाबों की फिक्र होगी, न कि VIP मेनू की।”

  • इस खर्च की स्वतंत्र ऑडिट जांच हो।
  • संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा जाए।
  • राज्य में इस अभियान के अंतर्गत हुए सभी आयोजनों का फंड ऑडिट सार्वजनिक किया जाए।

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✍ रिपोर्ट: Buland Soch ब्यूरो | शहडोल

kanchan shivpuriya
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कंचन शिवपुरीया माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय की मास कम्युनिकेशन की छात्रा हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं और सामाजिक मुद्दों पर स्पष्ट, तथ्यपूर्ण एवं संवेदनशील दृष्टिकोण के लिए जानी जाती हैं।
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