भोपाल, 15 जुलाई 2025 — “जब सड़क नहीं होती, तो सिर्फ रास्ते नहीं रुकते — जिंदगियाँ भी रुक जाती हैं… और कभी-कभी खत्म भी हो जाती हैं।” मध्यप्रदेश के रीवा ज़िले में भटिगँवा गांव की प्रिया रानी कोल की यह करुण और दुखद मौत केवल एक हादसा नहीं, प्रशासनिक विफलता की कार्रवाई है। बारिश, टूटी सड़कों और खराब बुनियादी ढांचे की मिलीभगत ने प्राकृतिक दर्द को अत्यधिक तीव्र बना दिया।
🌧️ घटनाक्रम और सबूत
- रविवार रात, जब चाही थी अस्पताल की ओर भागने की, तब महाना नदी उफान पर थी।
- वाहन पुल पार नहीं कर सका और कीचड़ में फंस गया। प्रिया करीब दो घंटे तक दर्द से तड़पती रही, जबकि उसके पास समय ही समय था।rewa-gravid-woman-death-because-of-broken-roads-in-rainवाहन पुल पार नहीं कर सका और कीचड़ में फंस गया। प्रिया करीब दो घंटे तक दर्द से तड़पती रही, जबकि उसके पास समय ही समय था।
- वाहन को वैकल्पिक मार्ग पर लगने वाला लगभग 40 किमी लंबा चक्कर काटना पड़ा, लेकिन तब तक देरी हो चुकी थी—प्रिया अस्पताल पहुंचने से पहले ही मारी गई। इस त्रासदी ने रीवा के ग्रामीण इलाकों की बुनियादी समस्याओं को फिर से उजागर कर दिया। {cite}turn0news19{cite}turn0search0{cite}turn0search1{cite}
🚨 राज्य में मातृ मृत्यु दर की तस्वीर
- देश में मध्यप्रदेश का MMR (मातृ मृत्यु दर) 159 दोषियों पर बना हुआ है—यह सर्वाधिक है। राष्ट्रीय औसत इससे लगभग दोगुना है। {cite}turn0news25{cite}turn0news26{cite}turn0search10{cite}
- राज्य में औसतन हर दिन दर्ज होने वाले 20 बलात्कार के साथ-साथ ग्रामीण गर्भवती महिलाओं की जान पर बुनियादी स्वास्थ्य जांच और अस्पताल पहुँच सुनिश्चित नहीं हो पा रही—जो स्वयं कईDeaths attributable directly to infrastructural flaws के दायरे में आता है। {cite}turn0news25{cite}turn0search10{cite}
🛣️ सियासी जवाबदेही — क्या पर्याप्त है ये?
- मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जांच का आदेश जारी किया है, लेकिन जैसे हर बार होता आया है—क्या जांच ही पर्याप्त होगी?
- सिद्धि जिला में 2023 में सड़क की समस्या उठी तो BJP सांसद डॉ. राकेश मिश्रा ने कहा – “प्रसव से एक हफ्ता पहले ले चलेंगे”। यह बयान न केवल असंवेदनशील, बल्कि ग्रामीण आबादी की प्राथमिक समस्या — सड़क की अनुपलब्धता — को झुठाटमानित करता है। {cite}turn0news20{cite}turn0search4{cite}turn0search2{cite}turn0search16{cite}
- कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने PWD मंत्री राकेश सिंह पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “जब तक सड़क है, गड्ढे रहेंगे” — यह बयान सिस्टम की उदासीनता को उजागर करता है। {cite}turn0news21{cite}
🧱 जमीनी हकीकत — जिलों का हाल
- रीवा में निचली बस्तियाँ बारिश में डूबने को तैयार हैं।
- मोहनी–बहुरी बांध इलाके की सड़कें ऐसे हैं मानो तालाब हों — गंदगी, कीचड़ और घरों में कैद लोग।
- सीधी जिले के खड्डा गांव में लोग सड़क की तंगी के विरोध में मोर्चा खोल चुके हैं — सवाल वही कि क्या सड़क के लिए मोर्चा खोलने से पहले किसी की जान बेकार जानी ठीक है? {cite}turn0news20{cite}turn0search4{cite}
🏥 समाधान के उपाय — क्या हो सकते हैं?
- 102 इमरजेंसी एम्बुलेंस सेवा — यह हर जिले में उपलब्ध है, लेकिन गली-गलियों तक पहुंच नहीं पायी। {cite}turn0search27{cite}
- ग्रामीण मार्गों को MPRDC और PWD की योजनाओं से जोड़ना चाहिए, लेकिन फिलहाल अनेकों परियोजनाओं में अड़चनें हैं। {cite}turn0search28{cite}
- जांच-आधारित स्वास्थ्य केंद्रों का लेखा-जोखा होना आवश्यक है — उदाहरण के लिए Anuppur का रजनगर PHC, जहाँ डॉक्टरों की कमी रही लेकिन हाईकोर्ट ने 10 दिनों में सुधार का आदेश दिया। {cite}turn0news22{cite}
- मातृ मृत्यु ऑडिट — JSAI ने इसे आवश्यक बताया है, ताकि कच्ची सूचना अद्यतन और उपयुक्त कार्रवाई हो सके। {cite}turn0news25{cite}
👥 निष्कर्ष
रीवा वाली घटना केवल स्थानीय समस्या नहीं, यह पूरे प्रदेश का आईना है। कानून और घोषणाएँ जहां दूसरी ओर हैं, वहीं सड़क, स्वास्थ्य, समय और जीवन-बचाव व्यवस्था असहाय हैं।
Buland Soch News कहता है —
- अब “जांच और बयान” का दौर ख़त्म हो।
- ज़मीन पर पुल और सड़कें बनें, एम्बुलेंस ₹0.5 किमी पर हो, PHC सशक्त हों, मातृ मृत्यु ऑडिट लोकल स्तर पर रिपोर्ट हो।
- हर जिम्मेदार को जवाबदेह बनना होगा—वर्ना फिर कोई और पीड़ित परिवार सबक बनकर मरकरी ले जाएगा।