Buland Soch News | विशेष रिपोर्ट
मध्यप्रदेश के कई जिलों में लगाए जा रहे स्मार्ट मीटर अब विवादों में घिर गए हैं। प्रदेशभर से लगातार ऐसी खबरें सामने आ रही हैं, जहां स्मार्ट मीटर लगने के बाद उपभोक्ताओं को अत्यधिक बिजली बिल थमाया गया है। भोपाल, जबलपुर, रीवा और विदिशा जैसे शहरों में उपभोक्ता हैरान हैं — क्योंकि जिन घरों में पहले 500 से 1000 रुपये तक के बिल आते थे, वहां अब 5,000 रुपये से लेकर 1,60,000 रुपये तक के बिल भेजे जा रहे हैं।
विदिशा में झुग्गीवासियों पर बिजली का ‘स्मार्ट हमला’
विदिशा में सामने आया मामला तो हैरान कर देने वाला है। यहां एक झुग्गी में रहने वाली महिला को स्मार्ट मीटर लगने के बाद ₹1,60,000 का बिल थमा दिया गया। महिला का कहना है कि उसकी झुग्गी की कुल कीमत भी इतनी नहीं है, लेकिन बिजली विभाग के अधिकारी सिर्फ यह कहकर पल्ला झाड़ते रहे कि “हमारी मशीनें भावनाएं नहीं पढ़तीं, सिर्फ मीटर गिनती हैं।” इस वाकये का वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं।
विपक्ष का हमला — उमंग सिंघार ने कसा तंज
कांग्रेस नेता उमंग सिंघार ने इसे सीधा ‘स्मार्ट लूट’ करार दिया है। उन्होंने कहा कि डिजिटल इंडिया के नाम पर सरकार जनता की जेब पर डाका डाल रही है। स्मार्ट मीटर के नाम पर जो वसूली
हो रही है, वह बेहद शर्मनाक है और इसका सीधा खामियाजा गरीब जनता को भुगतना पड़ रहा है।
स्मार्ट वसूली और डिजिटल धमकी
लोगों का कहना है कि स्मार्ट मीटर लगते ही बिजली विभाग स्मार्ट तरीके से नोटिस भी घर भेज देता है। उपभोक्ताओं को वसूली के लिए धमकाया जाता है और यह सारा खेल अब ऑनलाइन माध्यम से भी हो रहा है। उपभोक्ता संगठन इसे ‘डिजिटल इंडिया — डिजिटल लूट’ का नाम दे रहे हैं।
पेट्रोल पंप पर भी उपभोक्ता ठगे जा रहे
बिजली तक ही बात सीमित नहीं है। भोपाल में पेट्रोल पंप पर पेट्रोल की घटतौली का मामला भी तूल पकड़ चुका है। एक युवक ने जब टंकी से पेट्रोल निकालकर जांच की तो पाया कि ₹100 का पेट्रोल डलवाने के बावजूद मात्र ₹30 का ही पेट्रोल भरा गया था। पेट्रोल पंप संचालकों ने इसे ‘भूल-चूक लेनी-देनी’ बता कर मामला रफा-दफा करने की कोशिश की, लेकिन जनता अब सोशल मीडिया के जरिए इस तरह की घटनाओं को उजागर कर रही है।
अधिकारियों का जवाब — जांच जारी है
हर बार की तरह इस बार भी बिजली विभाग और प्रशासन का जवाब एक जैसा ही है — “हम जांच कर रहे हैं।” लेकिन जनता का विश्वास अब इस ‘जांच’ शब्द से उठता जा रहा है। उपभोक्ताओं का कहना है कि जांच सिर्फ फाइलों में होती है और नतीजे कभी सामने नहीं आते।
Buland Soch का सवाल — क्या ये वाकई स्मार्ट व्यवस्था है या खुली लूट?
जनता पूछ रही है कि आखिरकार स्मार्ट मीटर लगाने का असली मकसद क्या है? क्या ये वाकई पारदर्शिता और सुविधा देने के लिए हैं या फिर जनता से अवैध वसूली का एक नया तरीका?
Buland Soch News का मानना है कि ऐसी व्यवस्था, जहां जनता की बात को अनसुना कर दिया जाए और घोटालों की फाइलें ठंडी पड़ी रहें, वहां जनता को खुद आवाज उठानी होगी। स्मार्ट मीटर हो, टोल टैक्स हो या पेट्रोल — जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए सरकार और प्रशासन को ठोस कदम उठाने होंगे।
क्योंकि बुलंद सोच सिर्फ खबर नहीं दिखाती, असर भी लाती है।