
उच्च शिक्षा विभाग का डिजिटल अटेंडेंस सिस्टम ‘सार्थक’ फेल —
घर से सेल्फी भेजकर लगाई जा रही फर्जी अटेंडेंस।
फोटो में शिक्षक बनियान में, बिस्तर पर लेटे — लेकिन कार्रवाई सिर्फ अतिथि विद्वानों पर।
प्राचार्य और स्थायी प्रोफेसर बचाए गए, बच्चों की पढ़ाई को लगा झटका।
रिपोर्ट: कंचन शिवपुरिया | Buland Soch News | 18 जुलाई 2025
मध्यप्रदेश की उच्च शिक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
शिक्षकों की उपस्थिति को मॉनिटर करने के लिए तैयार किया गया ‘सार्थक ऐप’ अब खुद अप्रासंगिक और असार्थक होता नजर आ रहा है।
ताज़ा मामला सामने आया है, जिसमें सरकारी कॉलेजों के अतिथि विद्वान घर में बनियान पहनकर, बिस्तर पर लेटे सेल्फी भेजकर अटेंडेंस दर्ज कर रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
मध्यप्रदेश के सरकारी गल्र्स कॉलेज, गढ़ाकोटा, और शासकीय लॉ कॉलेज, श्योपुर समेत कई कॉलेजों में ‘सार्थक’ ऐप पर शिक्षकों ने क्लासरूम की बजाय अपने घर की तस्वीरें अपलोड कर दीं।
किसी ने बनियान में फोटो भेजा, किसी ने तकिए पर फोन रखकर अटेंडेंस लगाई।
कुछ मामलों में फोटो में चेहरे तक साफ़ नहीं दिख रहे थे।
सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि इन फर्जी तस्वीरों को कॉलेज के प्राचार्य ने सत्यापित कर पास भी कर दिया।‘दोषी कौन, और कार्रवाई किस पर?
- प्रकाश चंद्रा (Guest Faculty), गढ़ाकोटा कॉलेज
- हेमंत कुमार सैनी (Guest Faculty)
- शैलेश श्रीवास्तव (Guest Faculty), श्योपुर लॉ कॉलेज
- सुनीता यादव (Principal), श्योपुर लॉ कॉलेज
- डॉ. सोहन कुमार यादव (Principal), गढ़ाकोटा
हालांकि, आश्चर्यजनक रूप से कार्रवाई केवल अतिथि विद्वानों पर की गई है, जबकि स्थायी प्राचार्य और वरिष्ठ शिक्षकों को केवल चेतावनी दी गई है।
फर्जी उपस्थिति का सीधा असर:
- छात्रों को पढ़ाई का समय नहीं मिल रहा
- कक्षाएं खाली जा रही हैं
- रिपोर्टिंग सिर्फ “अटेंडेंस फोटो” तक सीमित
- गुणवत्ता पर कोई नज़र नहीं
‘सार्थक’ ऐप को बनाने का उद्देश्य पारदर्शिता लाना था, लेकिन मूल्यांकन प्रक्रिया इतनी लचर है कि शिक्षक कहीं से भी तस्वीर भेज दें, और वो ‘हाज़िरी’ बन जाती है।
घटनाक्रम की समयरेखा:
तिथि | घटना |
---|---|
अप्रैल 2024 | सार्थक ऐप की राज्य भर में शुरुआत |
जून 2025 | शिकायतें आने लगीं कि शिक्षक क्लास नहीं ले रहे |
जुलाई 2025 | फर्जी अटेंडेंस की तस्वीरें वायरल हुईं |
17 जुलाई 2025 | शिक्षा विभाग ने तीन गेस्ट फैकल्टी पर कार्रवाई की |
अब तक | किसी स्थायी स्टाफ पर कोई सख्त कदम नहीं |
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
शिक्षा विश्लेषक डॉ. शशांक दुबे कहते हैं:
“ये सिर्फ अटेंडेंस की बात नहीं है, ये बच्चों के भविष्य का सवाल है। जब शिक्षक क्लास में नहीं, तो ऑनलाइन फोटो भेजकर शिक्षा नहीं दी जा सकती।”
पूर्व कुलपति डॉ. आर.के. सिंह कहते हैं:
“सिस्टम जवाबदेही से ही चलता है। जब ऐप ही शिक्षक के घर को क्लास मान ले — तो पूरी व्यवस्था मज़ाक बन जाती है।”
पुराने मामले, लेकिन नतीजा वही:
- रीवा, 2023: कॉलेज में बिना क्लास लिए शिक्षकों को वेतन जारी — रिपोर्ट दबा दी गई
- खंडवा, 2022: फर्जी पीएचडी गाइड बनाकर शोध छात्रों का भविष्य बर्बाद
- भोपाल, 2021: कॉलेजों में बिना लाइब्रेरी संचालित हो रहे विभाग — कोई ऑडिट नहीं हुआ
इन मामलों में भी शुरुआती बयानबाज़ी हुई, लेकिन कोई स्थायी नीति या संरचनात्मक बदलाव नहीं लाया गया।

क्या होना चाहिए समाधान?
- प्रत्येक अटेंडेंस फोटो की स्थान और समय आधारित जियो टैगिंग अनिवार्य हो
- फैकल्टी वैलिडेशन थर्ड पार्टी एजेंसी से कराया जाए
- प्राचार्य को जवाबदेह बनाते हुए वेतन रोका जाए, यदि लापरवाही उजागर हो
- हर कॉलेज में मासिक ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए
‘सार्थक’ ऐप को लेकर जो रिपोर्ट सामने आई है, वो सिर्फ एक तकनीकी विफलता नहीं —
बल्कि शिक्षा व्यवस्था में जड़ जमा चुकी लापरवाही, जवाबदेही की कमी और दिखावटी सुधारों की असलियत है।
Buland Soch News यह मानता है कि
शिक्षा कोई स्कीम नहीं, वह राष्ट्र निर्माण की बुनियाद है।
और जब उस बुनियाद पर लापरवाही का बोझ बढ़े — तो पूरा भविष्य डगमगाने लगता है।