
📍 स्थान: बैरागढ़, भोपाल
🗓️ प्रकाशन तिथि: 26 जून 2025
✍ रिपोर्ट: Buland Soch टीम
भोपाल का बैरागढ़ क्षेत्र वर्षों से धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां स्थित काली माता मंदिर न केवल एक पूजनीय स्थल है, बल्कि स्थानीय लोगों की भावनाओं और परंपरा का प्रतीक भी बन चुका है। परंतु इसी पवित्र स्थान के इर्द-गिर्द अब एक गंभीर संकट भी जन्म ले रहा है — और वह है तेज़ ट्रैफिक, सड़क हादसे और लापरवाह व्यवस्था का खतरनाक मेल।
काली माता मंदिर शहर की मुख्य सड़क से एकदम सटा हुआ है। यह सड़क दिनभर ट्रैफिक से भरी रहती है — जिसमें दोपहिया, चारपहिया और पैदल यात्रियों की भरमार रहती है। इसी के बीच मंदिर में दर्शन के लिए आने-जाने वाले श्रद्धालु भी शामिल हो जाते हैं। नतीजा यह होता है कि यह स्थान धीरे-धीरे एक “हाई-रिस्क ट्रैफिक ज़ोन” में तब्दील हो गया है, जहां सड़क सुरक्षा और धार्मिक आस्था की टकराहट अब लोगों की जान पर भारी पड़ रही है।
स्थानीय लोगों और व्यापारियों का दावा है कि यहां हर सप्ताह कम से कम 2 से 4 सड़क दुर्घटनाएं होती ही होती हैं। कभी कोई स्कूटी चालक अचानक ब्रेक लगाने पर गिर जाता है, तो कभी कोई श्रद्धालु वाहन के पहिये के नीचे आ जाता है। खासतौर पर त्योहारों के समय यह स्थिति और भी भयावह हो जाती है, जब मंदिर में दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ती है और सड़क पूरी तरह ठप हो जाती है।
इस जगह से जुड़ी एक लोक मान्यता भी लोगों के व्यवहार को प्रभावित करती है। माना जाता है कि जो कोई इस मंदिर के सामने से बिना “जय माता दी” बोले निकलता है, उसके साथ कुछ न कुछ बुरा होता है। नतीजन, लोग चलती गाड़ी में ही हाथ जोड़ने की कोशिश करते हैं, कभी गर्दन घुमाते हैं, तो कभी एक टक मंदिर की ओर देखते हैं — जिससे ध्यान बंटता है और दुर्घटना की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
अब कल्पना कीजिए — एक ऐसी जगह जहां हजारों वाहन दिनभर गुजरते हैं, वहां ड्राइवरों का ध्यान सड़क से हटकर मंदिर पर हो जाए और स्पीड कंट्रोल का कोई प्रावधान न हो — तो दुर्घटना लगभग तय मानी जाती है।
बात यहीं खत्म नहीं होती। मंदिर के सामने कोई स्पीड ब्रेकर, सावधानी चिह्न, फुटपाथ या बैरिकेडिंग जैसी प्राथमिक ट्रैफिक व्यवस्थाएं तक मौजूद नहीं हैं। यहां तक कि भीड़भाड़ वाले समय में भी पुलिस या ट्रैफिक गाइडेंस के लिए कोई स्थायी व्यवस्था नहीं की जाती। त्योहारी दिनों
में जब मंदिर में हज़ारों की संख्या में लोग एकत्रित होते हैं, तब यह स्थान एक तरह का संवेदनशील आपदा क्षेत्र बन जाता है।
Buland Soch टीम ने जब स्थानीय दुकानदारों, ऑटो चालकों और श्रद्धालुओं से बात की, तो सभी ने एक स्वर में प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठाए।
"हमें डर रहता है कि कब किसके साथ क्या हो जाए… कई बार बच्चों को लेकर मंदिर आए लोग भी हादसे का शिकार हो जाते हैं," — यह कहना था एक स्थानीय महिला श्रद्धालु का।
इतना ही नहीं, एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड जैसे इमरजेंसी वाहनों को भी इस सड़क से निकलने में अक्सर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई बार आपातकालीन मरीजों को लेकर जा रही गाड़ियाँ मंदिर की भीड़ में फँस चुकी हैं, जिससे जान बचाने की समयसीमा भी हाथ से निकल जाती है।
बात अब सड़क दुर्घटनाओं और ट्रैफिक तक सीमित नहीं है — बात अब प्रशासन की ज़िम्मेदारी और आम नागरिक के जीवन की कीमत तक पहुँच चुकी है। क्या एक पवित्र स्थान को सुरक्षित रखना सिर्फ आस्था का विषय है या फिर व्यवस्था की भी ज़िम्मेदारी है?
विशेषज्ञों की मानें तो इस स्थान को सुरक्षित बनाने के लिए कई छोटे लेकिन प्रभावी उपाय तुरंत लागू किए जा सकते हैं। जैसे —
- मंदिर के दोनों ओर स्पीड ब्रेकर लगाए जाएं,
- स्पष्ट सावधानी बोर्ड और ट्रैफिक संकेतक लगें,
- श्रद्धालुओं के लिए अलग से फुटपाथ या पैदल कॉरिडोर तैयार किया जाए,
- भीड़ के समय ट्रैफिक डायवर्जन लागू किया जाए,
- सीसीटीवी कैमरे और ट्रैफिक कंट्रोल पोस्ट सक्रिय किए जाएं,
- और सबसे महत्वपूर्ण — प्रशासन, ट्रैफिक पुलिस और मंदिर समिति के बीच सहयोगात्मक योजना बनाई जाए।
अभी तक नगर निगम, PWD या ट्रैफिक विभाग ने कोई स्थायी समाधान लागू नहीं किया है। कुछ बार प्रस्ताव जरूर बने, लेकिन फाइलें केवल कार्यालयों में घूमती रहीं, ज़मीन पर कुछ नहीं उतरा।
Buland Soch मानता है कि सड़क और श्रद्धा के बीच संतुलन बनाना प्रशासन की जिम्मेदारी है — और इसके लिए केवल जागरूकता नहीं, बल्कि त्वरित क्रियान्वयन की आवश्यकता है।
अगर एक स्थान लोगों की जान लेने का कारण बन रहा है, तो श्रद्धा की दुहाई देना अब एक बहाना नहीं, बल्कि लापरवाही बन जाती है।
आस्था अपनी जगह है, पर जीवन का मोल उससे कहीं अधिक है।
इसलिए हम आपसे निवेदन करते हैं —
🔹 इस रिपोर्ट को साझा करें,
🔹 स्थानीय प्रशासन तक आवाज़ पहुँचाएं,
🔹 और खुद भी नियमों का पालन करें।