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बिना ड्यूटी, फुल सैलरी: नगर निगम में हर महीने ₹14 करोड़ की बर्बादी, 25% कर्मचारी नदारद!

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"खाली पड़ा शिक्षा एवं स्वास्थ्य शाखा का ऑफिस – बंद दरवाजे के पीछे लटकता एक सादा प्रिंटेड पोस्टर"
शिक्षा और स्वास्थ्य के काग़ज़ी ठिकाने — जब कार्यालय ही बंद हों, तो सेवाएँ किससे मांगें?

भोपाल | Buland Soch रिपोर्ट

भोपाल। मध्यप्रदेश नगर निगम में 12,400 अस्थायी कर्मचारियों (29 दिवसीय, 89 दिवसीय, विनियमित) को हर माह करीब ₹13.85 करोड़ का वेतन दिया जा रहा है, लेकिन इनमें से लगभग 25% कर्मचारी न तो फील्ड में दिखते हैं, न ऑफिस में। यानी हर माह ₹3.5 करोड़ व्यर्थ खर्च हो रहा है, जबकि जनता की बुनियादी समस्याएं— जैसे गंदगी, सीवेज, जल-टैंक का साफ़-परिचालन, सड़क मरम्मत— अनसुलझी ही रहीं ।

📌 तीन प्रमुख मामलों की पड़ताल

  1. गायब कर्मचारी: निगम के तीन जोन्स व दस वार्डों का विश्लेषण करने पर पता चला कि लगभग 4,000 कर्मचारियों में से सिर्फ 1,000 फील्ड में काम करते पाए गए । जिनमें से 25% अधिकारी उन वार्डों से अनुपस्थित ही रहे।
    1. नेताओं और अफसरों के घरों पर काम: कई कर्मचारी निगम से तनख्वाह लेकर रिश्तेदारों और अधिकारियों के घरों में कार्यरत हैं— इन्क्रिमेंट और छुट्टी के समय कैचिंग सिस्टम प्रभावित नहीं हुआ है।

    1. मेंटेनेंस शाखाओं में पेंच फंसे: शिक्षा या पानी के काम को देखती शाखाओं में तो ताले बंद पड़े हैं, लेकिन रिकॉर्ड में भरे हुए नामों से तनख्वाह जारी 

💸 वेतन क्यों बढ़ा, पर काम कहाँ?

पिछले वर्षों में निगम कर्मचारियों की सैलरी खर्च में निरंतर वृद्धि हुई है: 2021 में ₹11.79 करोड़, 2022 में ₹11.97 करोड़, 2023 में ₹12.43 करोड़, 2024 में ₹13.08 करोड़ और अब ₹13.85 करोड़ । यह निरंतर बढ़ोतरी तब हुई है जब जवाबदेही प्रणाली कहीं गुम हो गई।

🖥 GPS आधारित “धक्कादर एप्प” भी आधा-अधूरा

निगम ने फील्ड की ट्रैकिंग में सुधार के लिए GPS एप शुरू किया, लेकिन उसकी रिपोर्टिंग व्यापक जांच-पड़ताल से दूर हो गई। कर्मचारियों की वास्तविक उपस्थिति नहीं मिली और “फर्जी डाटा” रिपोर्ट किया गया ।

🔍 अन्य राज्यों से तुलना

MP में यह घटनाक्रम अकेला नहीं है— उदाहरण के लिए नागालैंड के डिप्टी CM ने हाल ही में “नो वर्क नो पे” नीति के तहत 3 विभागों के 60% कर्मचारियों को अनुपस्थित पाए जाने पर सैलरी में कटौती की और कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की । जाहिर है, MP में भी सख्ती की जरूरत खड़ी है।

🧭 आम नागरिकों के लिए बड़ा सवाल

जनता टैक्स देती है लेकिन निगम इसे कहीं गुमनाम कर्मचारियों की तनख्वाह में उड़ा देता है। अफसर, नेता, परिवार, रिश्तेदार— सबको सुविधाजनक रोजगार मिलता है, पर जन समुदाय को बुनियादी सुविधाएं नहीं। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं तो क्या है?

🔔 Buland Soch News की राय:
ये आंकड़े सिर्फ प्रशासनिक अक्षमता नहीं, बल्कि जनता का विश्वास और सामाजिक संपत्ति लूटने का प्रतीक हैं— जिसकी कड़ी जवाबदेही अपेक्षित है:

  • सभी कर्मचारियों का GPS और बायोमेट्रिक रिकॉर्ड सुनिश्चित किया जाए।
  • आधी उपस्थिति वाले नामों को तुरंत निलंबित और रिकवरी प्रक्रिया शुरू की जाए।
  • ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए और दोषी अफसरों/कर्मचारियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए।

📈 क्यों? क्यूंकि “पगार होगी तभी सच्ची सेवा होगी”, और जनसेवा तभी प्रमाणित होगी जब जनता को असली सेवा मिले

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