मध्यप्रदेश में इस बार मानसून अपना रौद्र रूप लेकर आया है। जुलाई के पहले पखवाड़े में ही औसत 18 इंच बारिश दर्ज हो चुकी है और कई जिलों में रिकॉर्ड बारिश के चलते जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। प्रदेश में 16 जून को मानसून की औपचारिक दस्तक के साथ ही लगातार बारिश हो रही है। मौसम विभाग ने 17 जिलों में भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है, जबकि कई शहरों में डैम के गेट खोलने पड़े हैं और नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।
श्योपुर, शिवपुरी, जबलपुर, रीवा, सागर, मंडला, उमरिया, सिवनी, छतरपुर, टीकमगढ़ और निवाड़ी जैसे जिलों में बीते एक सप्ताह से तेज बारिश हो रही है। इस कारण इन जिलों के कई कस्बों और गांवों में बाढ़ जैसी स्थिति बन गई है। श्योपुर जिले में विजयपुर क्षेत्र की क्वारी नदी का जलस्तर बढ़ने से आगरा जाने वाला प्रमुख मार्ग बंद हो गया है। वहीं, बड़ौदा क्षेत्र में घरों, दुकानों और अस्पतालों तक में पानी भर गया। शिवपुरी के अटल सागर (मड़ीखेड़ा) डैम में पानी का स्तर बढ़ने के कारण सोमवार सुबह छह गेट खोलने पड़े और 1500 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। इसके बाद निचले इलाकों में जलभराव की स्थिति और गंभीर हो गई है।
मंडला जिले में 9 घंटे में 2 इंच बारिश दर्ज की गई, जिससे कई घरों और दुकानों में पानी घुस गया। रायसेन जिले में बारिश के बीच मड रैली कराए जाने पर भी चर्चा हो रही है, जहां उफनते नालों के बीच गाड़ियों की दौड़ देखने को मिली। टीकमगढ़ में मकान ढहने की एक घटना में तीन भैंसों की जान चली गई। इंदौर, भोपाल और उज्जैन जैसे शहरों में भी लगातार बारिश से सड़कों पर पानी भर गया है और ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा गई है।
जल स्तर बढ़ने के साथ ही खतरे की रेखा पार कर रहीं नदियां:
नर्मदा नदी समेत कई प्रमुख नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। नर्मदा के घाटों पर प्रशासन ने सतर्कता बढ़ा दी है। खतरनाक स्थलों पर बैरिकेडिंग और निगरानी दल तैनात किए गए हैं। इंदौर में छोटी नर्मदा के तटवर्ती इलाकों में पानी भरने की सूचना है।
बारिश के पिछले रिकॉर्ड भी टूटने के कगार पर:
भोपाल, इंदौर, जबलपुर और उज्जैन जैसे प्रमुख शहरों में जुलाई के महीने में अब तक की औसत बारिश के आंकड़े पार होने की कगार पर हैं। भोपाल में जुलाई महीने की औसत बारिश 14.4 इंच मानी जाती है, जबकि 1986 में रिकॉर्ड 41 इंच वर्षा दर्ज की गई थी। वर्ष 1973 में एक ही दिन में 11 इंच पानी बरसा था, जो आज भी राजधानी के लिए सर्वाधिक है। इंदौर में 1913 में 24 घंटे में 11.5 इंच बारिश हुई थी और 1973 में पूरे महीने 30.5 इंच पानी गिरा था। जबलपुर में जुलाई 1930 में 45 इंच तक पानी गिर चुका है, जो मध्यप्रदेश में अब तक का सर्वाधिक मासिक आंकड़ा है।
मौसम वैज्ञानिकों की चेतावनी:
भारतीय मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक अरुण शर्मा के अनुसार, वर्तमान में मध्यप्रदेश से एक सक्रिय मानसून ट्रफ गुजर रही है और साथ ही बंगाल की खाड़ी में बना कम दबाव का क्षेत्र (Low Pressure Area) भी प्रदेश के मौसम को प्रभावित कर रहा है। इनके कारण अगले चार दिनों तक यानी 18 जुलाई तक प्रदेशभर में तेज बारिश जारी रहने की संभावना है।
ग्वालियर और बुंदेलखंड में भी हालात बदले:
अब तक बारिश से वंचित रहे ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड क्षेत्र में भी इस बार अच्छी बारिश हुई है। ग्वालियर, जहां पिछले दस वर्षों में छह बार जुलाई में 8 इंच से कम बारिश हुई थी, वहां इस बार मानसून शुरुआत से ही सक्रिय रहा है। वहीं, निवाड़ी जिले में तो अब तक 103% बारिश का कोटा पूरा हो चुका है।
प्रशासन अलर्ट मोड पर:
राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने सभी जिलों को अलर्ट मोड पर रहने के निर्देश दिए हैं। निचले इलाकों से लोगों को शिफ्ट करने की तैयारी की जा रही है। राहत शिविर, चिकित्सा व्यवस्था, बिजली आपूर्ति और पेयजल जैसी सुविधाओं को सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं। शिक्षा विभाग ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद करने की अनुमति दे दी है।
निष्कर्ष:
मध्यप्रदेश में इस बार मानसून ने कई वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ने का संकेत दे दिया है। डैम के गेट खुलने, नदियों के उफान पर आने और लगातार हो रही मूसलाधार बारिश से बाढ़ जैसी स्थिति निर्मित हो चुकी है। आने वाले दिनों में बारिश की तीव्रता और बढ़ सकती है, जिससे हालात और चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी अब ज्यादा सतर्कता और त्वरित राहत के साथ स्थिति पर नियंत्रण की है।