Buland Soch News विशेष रिपोर्ट
📍 रीवा | मध्य प्रदेश | दिनांक: 01 जुलाई 2025
मध्यप्रदेश के रीवा जिले से एक मामला सामने आया है, जिसने पुलिस प्रशासन और न्यायपालिका के बीच की कार्यप्रणाली और सीमाओं पर गहन बहस छेड़ दी है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रीवा के एसपी विवेक सिंह को एक गंभीर टिप्पणी के साथ फटकार लगाई, जो अब सोशल मीडिया से लेकर लोक चर्चा तक का विषय बन चुकी है। न्यायालय ने कहा – “क्या आपके पैरों में मेहंदी लगी थी?” यह कटाक्ष पुलिस के निष्क्रिय रवैये पर टिप्पणी के रूप में देखा गया है, और इसके बाद से पूरे प्रशासनिक तंत्र में हलचल मच गई है।
मामला उस समय तूल पकड़ गया जब हाईकोर्ट ने रीवा पुलिस की कार्यशैली पर नाराजगी व्यक्त करते हुए यह स्पष्ट किया कि संवेदनशील मामलों में भी पुलिस की कार्रवाई संतोषजनक नहीं रही। कोर्ट ने यह प्रश्न उठाया कि जब न्यायपालिका से स्पष्ट निर्देश जारी किए गए थे, तब स्थानीय पुलिस ने समय रहते उनका पालन क्यों नहीं किया? इस टिप्पणी के बाद न केवल एसपी विवेक सिंह की कार्यशैली पर सवाल उठे, बल्कि यह मामला शासन और न्याय प्रणाली के बीच की संवेदनशील रेखा पर बहस का कारण बन गया है।
स्थानीय सूत्रों और समाचार एजेंसियों के अनुसार, रीवा प्रशासन के कुछ महत्वपूर्ण मामलों में न्यायालय द्वारा बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद अपेक्षित कार्रवाई नहीं की गई। ऐसे में जब सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने एसपी से सीधे सवाल किया, तो पूरे प्रदेश में यह चर्चा का विषय बन गया कि क्या कार्यपालिका कानून के आदेशों को गंभीरता से नहीं ले रही?
इस टिप्पणी के तुरंत बाद यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सऐप पर हजारों लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी। कुछ ने इसे न्यायपालिका का ओवररिएक्शन कहा, जबकि कई लोगों ने इसे एक जरूरी हस्तक्षेप बताया जो लोकतंत्र में प्रशासन की जवाबदेही तय करता है। कई रिटायर्ड अफसरों, वकीलों और शिक्षाविदों ने इस पर राय रखते हुए कहा कि यह टिप्पणी प्रतीकात्मक रूप से बहुत गहरी है – यह सत्ता के उन हिस्सों को चेतावनी है जो अपने कर्तव्यों को हल्के में ले रहे हैं।
इस घटना ने एक बार फिर देश के लोकतांत्रिक ढांचे में तीनों प्रमुख स्तंभों — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — के संतुलन को लेकर गम्भीर सवाल उठाए हैं। प्रशासनिक अफसरों का एक वर्ग यह मानता है कि अदालतों को प्रशासनिक प्रक्रिया में सीमित हस्तक्षेप करना चाहिए, ताकि क्षेत्रीय अधिकारियों को फील्ड में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की शक्ति बनी रहे। वहीं दूसरी ओर, न्यायपालिका समर्थकों का कहना है कि जब कार्यपालिका अपने दायित्वों में विफल होती है, तब कोर्ट का हस्तक्षेप न केवल जायज़ है, बल्कि अनिवार्य है।
रीवा एसपी विवेक सिंह को यह टिप्पणी केवल व्यक्तिगत आलोचना नहीं, बल्कि एक पूरे पुलिस ढांचे की उस मानसिकता पर सवाल है, जहां संवेदनशील मामलों में भी त्वरित कार्रवाई नहीं हो पाती। यह सवाल उठता है कि जब हाईकोर्ट जैसी सर्वोच्च संस्थान द्वारा आदेश दिया जाता है, तो उसे हल्के में क्यों लिया जाता है? क्या सिस्टम में जवाबदेही की कमी है, या फिर अफसरशाही में अकर्मण्यता का भाव बढ़ रहा है?
फिलहाल इस पूरे मामले ने न सिर्फ रीवा जिला बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में शासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार और पुलिस विभाग दोनों के लिए यह एक चेतावनी है कि पारदर्शिता, समयबद्ध कार्रवाई और न्यायिक आदेशों का सम्मान करना प्रशासनिक मूल्यों की बुनियाद है। यह जरूरी है कि पुलिस प्रशासन इस घटना को व्यक्तिगत आलोचना मानकर टालने की बजाय इसे आत्मविश्लेषण के अवसर के रूप में ले।
Buland Soch News का मानना है कि यह मामला सिर्फ एक टिप्पणी भर नहीं है – यह लोकतंत्र में जवाबदेही की जीवंत मिसाल है। जब न्यायपालिका प्रशासनिक निष्क्रियता पर आवाज उठाती है, तो वह जनता की भावनाओं और अधिकारों की रक्षा करती है। उम्मीद की जाती है कि रीवा प्रशासन इससे सबक लेगा और भविष्य में अधिक उत्तरदायी और संवेदनशील रवैया अपनाएगा।
✍🏻 रिपोर्ट: Buland Soch न्यूज़ डेस्क, रीवा