📍 लोकेशन: मऊगंज, मध्यप्रदेश
🗓 तारीख: 19 जून 2025
✍ रिपोर्टर: Buland Soch संवाददाता
मऊगंज जनपद में प्रशासनिक गरिमा पर प्रश्नचिह्न
एक बार फिर मऊगंज जनपद भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही के सवालों के घेरे में आ गया है। जनपद उपाध्यक्ष राजेश पटेल ने जनपद सदस्यों समय लाल कोल और राकेश विश्वकर्मा के साथ मिलकर कलेक्टर संजय कुमार जैन को एक विस्तृत शिकायत पत्र सौंपा है। इसमें पीसीओ प्रभारी राम कुशल मिश्रा को तत्काल पद से हटाने की माँग की गई है।
2007 का गंभीर आपराधिक मामला — दोष सिद्धि की पुष
शिकायत में बताया गया कि राम कुशल मिश्रा पर वर्ष 2007 में दर्ज प्रकरण क्रमांक 271/2007 में गंभीर आरोप सिद्ध हुए थे। यह मामला धोखाधड़ी और सरकारी कार्य में बाधा जैसे आपराधिक धाराओं के अंतर्गत था।
न्यायालय प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, जिला रीवा ने दिनांक 20 अप्रैल 2012 को मिश्रा को तीन वर्ष की सश्रम कारावास और ₹11,000 के अर्थदंड से दंडित किया था। जानकारी के अनुसार यह राशि मिश्रा द्वारा जमा कर दी गई थी, जिससे उनकी दोष सिद्ध स्थिति की पुष्टि होती है।
शासन निर्देशों की अवहेलना?
भारत सरकार की सेवा नियमावली और मध्यप्रदेश प्रशासनिक दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि किसी शासकीय कर्मचारी को न्यायालय द्वारा दोषी ठहराया जाता है, तो उसे सेवा से हटाना अनिवार्य है।
हालाँकि, इस मामले में राम कुशल मिश्रा ने कोर्ट के आदेश को गुप्त रखते हुए अपनी नियुक्ति बनाए रखी। यह न केवल प्रशासनिक नैतिकता के खिलाफ है, बल्कि जन विश्वास और न्यायिक प्रक्रिया का भी अपमान है।
जनप्रतिनिधियों की संयुक्त कार्रवाई
जनपद उपाध्यक्ष राजेश पटेल ने कहा, “यदि दोषी व्यक्ति को हटाया नहीं गया, तो जनता का विश्वास टूटेगा और भ्रष्टाचार को मौन सहमति मिल जाएगी। हम न्याय की मांग करते हैं।”
साथ ही, समय लाल कोल और राकेश विश्वकर्मा ने भी अपने समर्थन में बयान देते हुए कहा कि यह प्रकरण जनपद की साख के लिए अत्यंत संवेदनशील है। यदि प्रशासन ने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो वे जन आंदोलन की चेतावनी देंगे।
कलेक्टर की प्रतिक्रिया और प्रशासन की जिम्मेदारी
कलेक्टर संजय कुमार जैन ने शिकायत को गंभीरता से लेते हुए प्रारंभिक जांच और उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि यदि शिकायत तथ्यात्मक रूप से प्रमाणित होती है, तो शासकीय नियमों के तहत तत्काल कार्यवाही की जाएगी।
प्रशासनिक विशेषज्ञों की राय
पूर्व लोकायुक्त अधिवक्ता डॉ. वी.एन. पांडे ने कहा, “यह एक स्पष्ट सेवा उल्लंघन है। यदि कोर्ट सजा दे चुकी है, तो ऐसे कर्मचारी की नियुक्ति प्रशासनिक अपराध मानी जा सकती है। यह सिर्फ निलंबन का मामला नहीं बल्कि सेवा समाप्ति तक जा सकता है।”
एक अन्य प्रशासनिक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कार्मिक विभाग द्वारा नियमित सत्यापन न होना भी इस तरह की स्थितियों को जन्म देता है।
जनता की प्रतिक्रियाएं
स्थानीय व्यापारी संघ अध्यक्ष ने कहा, “ऐसे दोषी कर्मचारी यदि पद पर बने रहें, तो आम नागरिकों को न्याय और पारदर्शिता की उम्मीद करना व्यर्थ है।”
शिक्षक संघ के सदस्य रामप्रसाद मिश्रा ने भी कहा, “हम चाहते हैं कि जनपद कार्यालय की गरिमा बनी रहे और ऐसे मामलों में त्वरित निर्णय हों।”
क्या यह उदाहरण बनेगा या भूल जाएगा?
यह प्रकरण मऊगंज ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता के लिए एक लिटमस टेस्ट बन गया है। यदि दोष सिद्ध व्यक्ति को सेवा में बने रहने की अनुमति दी जाती है, तो यह शासन प्रणाली पर गहरी चोट मानी जाएगी।
अब सभी की निगाहें कलेक्टर की कार्रवाई पर हैं — क्या दोषी को दंड मिलेगा या यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा?
Buland Soch News — रिपोर्ट जारी रहेगी…