Saturday, November 8, 2025
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शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर उठे सवाल: आवेदन से पहले बदले नियम और सिलेबस, हजारों अभ्यर्थी हुए अयोग्य

मध्यप्रदेश में शिक्षक भर्ती को लेकर बड़ा विवाद — व्यापमं की शिक्षक पात्रता परीक्षा-3 के नियमों और सिलेबस में अचानक बदलाव ने हजारों उम्मीदवारों को अयोग्य कर दिया। संस्कृत और उर्दू जैसे विकल्प भी इस बार हटा दिए गए। अब डिप्लोमा के रिजल्ट के बिना आवेदन भी नहीं हो सकेगा।

19 जुलाई 2025 | Buland Soch News ब्यूरो, भोपाल

भोपाल — मध्यप्रदेश कर्मचारी चयन मंडल (MPESB) द्वारा आयोजित होने वाली शिक्षक पात्रता परीक्षा-3 (MP TET-3) ने एक बार फिर विवाद खड़ा कर दिया है। आवेदन से पहले ही सिलेबस और नियमों में बदलाव कर दिए गए हैं, जिससे हजारों उम्मीदवार खुद को अयोग्य स्थिति में पा रहे हैं।

  • सिलेबस और विकल्पों में बड़ा बदलाव:
    इस बार संस्कृत और उर्दू भाषा को वैकल्पिक विषयों की सूची से बाहर कर दिया गया है। इससे इन विषयों के अभ्यर्थियों को बड़ा झटका लगा है, जो वर्षों से इसी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।
  • डीएलएड और बीएड रिजल्ट की बाध्यता:
    जिन अभ्यर्थियों का डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन (D.El.Ed) या B.Ed का अंतिम परिणाम जारी नहीं हुआ है, वे आवेदन के लिए अयोग्य घोषित कर दिए गए हैं। इससे हजारों अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में लटक गया है।
  • डिग्री पूरी की अनिवार्यता ने बढ़ाई परेशानी:
    अभ्यर्थियों का कहना है कि व्यापमं द्वारा आवेदन की अंतिम तिथि तय करने से पहले डिग्री और रिजल्ट को लेकर नीति स्पष्ट नहीं की गई।
  • अभ्यर्थियों की मांगें:
    • आवेदन की अंतिम तिथि आगे बढ़ाई जाए।
    • पूर्व की तरह संस्कृत और उर्दू विकल्प बहाल किए जाएं।
    • बीएड/डीएलएड के रिजल्ट लंबित होने पर भी आवेदन का मौका दिया जाए।
  • सरकारी पक्ष:
    कर्मचारी चयन मंडल का कहना है कि नियमों में बदलाव नियमानुसार किया गया है, लेकिन छात्रों के आक्रोश को देखते हुए सरकार के स्तर पर समीक्षा की जा सकती है।
  • पूर्व में भी विवादों में रहा व्यापमं:
    व्यापमं की परीक्षाएं पहले भी पेपर लीक और नियमों के बदलते मानकों को लेकर सवालों के घेरे में रही हैं।

शिक्षक भर्ती से जुड़े नए नियमों ने प्रदेश भर के युवाओं में असंतोष और निराशा फैला दी है। शिक्षा जगत से जुड़े संगठनों और नागरिक मंचों ने सरकार से नियमों की पुनर्समीक्षा की मांग की है। क्या इस बार भी छात्रों की आवाज़ अनसुनी रह जाएगी, या प्रशासन समय रहते समाधान निकालेगा — यही सबसे बड़ा सवाल है।

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