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750 से अधिक कुर्बानी, विश्व में छवि धूमिल, करोड़ो खर्च, अंतत: कृषि कानून वापस

17 सितंबर 2020 का दिन किसानों के लिए काला दिन माना गया था. … लेकिन आज ठीक एक साल बाद यानि 19 नवंबर को किसानों की एक बड़ी जीत हुई है। यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने प्रातः 9 बजे देश की जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कृषि कानून वापस लेने की घोषणा

17 सितंबर 2020 का दिन किसानों के लिए काला दिन माना गया था. … लेकिन आज ठीक एक साल बाद यानि 19 नवंबर को किसानों की एक बड़ी जीत हुई है। यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने प्रातः 9 बजे देश की जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी है। जिसके बाद आंदोलनकारी  किसानों में खुशी के आँशु आ गए।


राज्यसभा में भयंकर हंगामे के बीच पास हुआ था कानून


लोकसभा में बहुमत के कारण कृषि कानून पास तो हो गए थे लेकिन राज्यसभा में ध्वनिमत के माध्यम से पास हुए थे।जिसके बाद तमाम  विपक्षी पार्टियों ने राज्यसभा में हंगामा खड़ा कर दिया था। जिसमे मुख्यतः आप के संजय सिंह आजाद  व  कांगेस के  दिग्विजयसिंह को मानसून सत्र से निलंबित कर दिया था। इस तरह नाटकीय ढंग से कृषि कानून पास हुए थे।
क्या थे वे कृषि कानून
पहला कानून जिसका नाम ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020’ है, यह कानून निकट भविष्य में सरकारी कृषि मंडियों की प्रासंगिकता को शून्य कर देगा। सरकार निजी क्षेत्र को बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी जवाबदेही के कृषि उपज के क्रय-विक्रय की खुली छूट दे रही है। इस कानून की आड़ में सरकार निकट भविष्य में खुद बहुत अधिक अनाज न खरीदने की योजना पर काम कर रही है।सरकार चाहती है कि अधिक से अधिक कृषि उपज की खरीदारी निजी क्षेत्र करें ताकि वह अपने भंडारण और वितरण की जवाबदेही से बच सके।
दूसरा कानून ‘कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020’ है, जिसकी अधिक चर्चा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के विवाद में समाधान के मौजूदा प्रावधानों के संदर्भ में की जा रही है।
तीसरा कानून ‘आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020’ है. यह कानून आने वाले निकट भविष्य में खाद्य पदार्थों की महंगाई का दस्तावेज है। इस कानून के जरिए निजी क्षेत्र को असीमित भंडारण की छूट दी जा रही है. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी।

आंदोलन में किसानों की
पहले तो किसानों ने स्थानीय स्तर  पर आंदोलन किया व सरकार की प्रतिक्रिया न आने पर किसानों ने दिल्ली की ओर कूच किया। पिछले वर्ष के नवंबर से अब तक दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों के विरोध में धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। इस आंदोलन को विश्व के तमाम देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों का समर्थन  मिल रहा था।विश्व भर में कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन ने तूल पकड़ ली। व इस आंदोलन के की चर्चा विश्व भर में होने लगीं।

आंदोलन में किसानों की मृत्यु


इस आंदोलन के चलते कई किसानों की मृत्यु भी हुई। आंदोलन के दौरान बच्चे बुज़ुर्ग एवं महिलाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सभी आंदोलनकारीयो ठंड हो गर्मी हो  या बारिश  का मौसम हो किसान अपनी मांगों को लेकर अड़े रहे। आंदोलन के दौरान 750 से भी अधिक किसानों की मृत्यु हुई। अंततः कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए सरकार मजबूर हुई।


विश्व में धुमिल हुई भारत की छवि


कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन की चर्चा पूरे विश्व में हुईं थी। जिस पर विश्व के बड़े बड़े नेताओं ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। किसान आंदोलन के प्रति सरकार के उदासीन रवैये की निंदा की थी। जिससे विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद्  ग्रेटा थनबर्ग, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, कनाडा व ब्रिटेन की संसद,  व विश्व भर में सरकार की निंदा हुई। अंततः सरकार ने इन तथाकथित काले कानूनों का वापस ले लिया है। अगर सरकार यह कृषि कानून पहले ही वापस ले लेती तो विश्व स्तर पर भारत की छवि खराब न होती।
जनता के पैसों की बर्बादी


संसदीय सत्र जनता द्वारा दिए जाने वाले टैक्स पर चलता है। जिसमें सांसदों , प्रधानमंत्री व विभिन्न पदाधिकारीयो के वेतन व उनके रहने, खाने, व उनकी सुरक्षा पर भारी मात्रा में व्यय होता है। व कानून बनाने  के लिए नियुक्त किए गए अफसरों पर व स्टेशनरी पर भी भारी व्यय होता है। ऐसे में हमारे देश के हुक्मरान क़ानून बनाने को मज़ाक समझती हैं। बिना विचार विमर्श किए कृषि कानूनों पहले लागू किए व कई चरणों की बैठकों के बाद भी निष्कर्ष भी निकाल पाई व अंत में कृषि कानून वापस ले लिए गए। कानून बनाने से लेकर रद्द करने तक जो पैसा व्यय हुआ है उसका ज़िम्मेदार कौन ?


हम किसानों को समझा नहीं पाए …


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने विवादित कानूनों को रद्द करते हुए भावुक होकर बयान दिया और कहा ‘मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही हुई होगी जिसके कारण दीये के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए। आज गुरुनानक देव जी का पवित्र प्रकाश पर्व है। यह समय किसी को भी दोष देने का नहीं है। आज मैं आपको, पूरे देश को ये बताने आया हूं कि हमने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में हम तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी करेंगे।…एमएसपी को और अधिक कारगर, प्रभावी बनाने के लिए एक कमिटी का गठन किया जाएगा। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान, कृषि वैज्ञानिक और एक्सपर्ट होंगे। मैं गुरु गोविंद सिंह जी की भावना में अपनी बात समाप्त करूंगा- देहि शिवा वर मोहि इहै, शुभ करमन ते कबहूं न टरूं।

750 से अधिक कुर्बानी, विश्व में छवि धूमिल, करोड़ो खर्च, अंतत: कृषि कानून वापस

चुनाव में हार के डर से वापस हुए कानून – विपक्ष

देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा को किसानों की जीत करार देते हुए कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों में ‘हार के डर’ से केंद्र सरकार यह फैसला करने को विवश हुई।
दूसरी तरफ, भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “राजनेता की तरह” लिए गए इस फैसले की सराहना की और कहा कि इससे पूरे देश में भाईचारे का माहौल बनेगा।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने की प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा के बाद कहा कि देश के अन्नदाताओं ने अपने सत्याग्रह से सरकार के अहंकार को झुका दिया है और अब प्रधानमंत्री मोदी को आगे ऐसा ‘दुस्साहस’ नहीं करना चाहिए।
किसानों-मजदूरों के नाम लिखे खुले पत्र में राहुल गांधी ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री को अगले साल तक किसानों की आय दोगुनी करने का खाका सामने रखना चाहिए।
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि प्रधानमंत्री को देश के किसानों के साथ किए गए ‘दमन’ और 700 किसानों की मौत के लिए माफी मांगनी चाहिए।
         इस तरह से केंद्र सरकार ने  विवादित कृषि कानूनों को रद्द कर दिया है । देश भर के किसानों में जीत की खुशी हैं।