📍 लोकेशन: भोपाल, नरेला विधानसभा
🗓 तारीख: 14 जून 2025
✍ रिपोर्टर विशेष
भोपाल में बना एक नया पुल इन दिनों सोशल मीडिया, मीडिया और आम जनजीवन में चर्चा का विषय बना हुआ है। मगर वजह इसकी खूबसूरती नहीं, बल्कि इसकी ‘भूलभुलैया जैसी बनावट’ है, जिसे देखकर जनता की जान सांसत में है।
पिछले सप्ताह ही उद्घाटन हुआ यह पुल सीधे 90 डिग्री के तीखे मोड़ के साथ रेलवे ट्रैक के ऊपर से गुजरता है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि “यह पुल नहीं, दुर्घटना का निमंत्रण है।” सुबह की मॉर्निंग वॉक हो या बाइक से दफ्तर जाना – सबको अब रफ्तार के साथ किस्मत भी साथ ले जानी पड़ती है।
जनता का सवाल –
यह कैसा निर्माण, और क्यों?
स्थानीय निवासी रवि वर्मा का कहना है –
“यह पुल देखकर लगता है जैसे इंजीनियरिंग को जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया गया हो। गाड़ी अगर थोड़ी तेज हो जाए, तो सीधा रेलवे लाइन पर जाकर गिरेगी। क्या इसी को विकास कहते हैं?”
विधायक और महापौर की चुप्पी पर उठे सवाल
यह ब्रिज नरेला विधानसभा क्षेत्र में बना है, जिसके विधायक श्री विश्वास सारंग स्वयं एक इंजीनियर हैं। वहीं, इसी क्षेत्र में शहर की महापौर श्रीमती मालती राय भी निवास करती हैं, जिन्हें ‘सक्रिय प्रशासक’ माना जाता है। बावजूद इसके इस तरह की खतरनाक बनावट उनके संज्ञान में कैसे नहीं आई? क्या यह लापरवाही नहीं, बल्कि जानबूझकर की गई अनदेखी है?
अंदरखाने की खबर –
टेंडर और ठेके में मिलीभगत?
सूत्रों के अनुसार इस ब्रिज का निर्माण कार्य एक खास ठेकेदार को सौंपा गया, जिसकी फाइलों में कई कमियां पहले ही उजागर हो चुकी थीं। बावजूद इसके निर्माण जारी रहा। इंजीनियरों को ऊपर से ‘संकेत’ मिल चुके थे कि “काम चलता रहे, बाकी बाद में देख लेंगे।”
जब सोशल मीडिया पर भारी आलोचना शुरू हुई, तब दो जूनियर इंजीनियरों को सस्पेंड कर दिया गया।
लेकिन बड़ा सवाल है –
क्या सिर्फ वही दोषी थे?
क्या विधायक, महापौर, PWD अफसर और टेंडर कमेटी की कोई जवाबदेही नहीं?
पुरानी गलतियां, नए जुगाड़
भोपाल में यह कोई पहला मामला नहीं है।
डीबी मॉल के पास अंबेडकर ब्रिज और मेट्रो स्टेशन का निर्माण भी कुछ ऐसे ही हुआ –
जहां यातायात दिशा भ्रमित कर देने वाली है, और स्टेशन की ऊँचाई इतनी कम रखी गई कि भारी वाहन वहां से निकल ही नहीं सकते।
आज इन्हीं गलतियों को ‘जुगाड़ से ठीक करने’ की कोशिश की जा रही है, जिसका अलग से बजट निकाला गया है।
यानि पहले गलत डिजाइन बनाओ, फिर नया टेंडर निकालो, और फिर से कमाओ!
🗣 जनता का आक्रोश – जवाब चाहिए, जाँच हो!
जनता अब सोशल मीडिया पर प्रशासन से जवाब मांग रही है।
CBI या लोकायुक्त से निष्पक्ष जांच की माँग उठ रही है।
कई युवा समूहों और RTI कार्यकर्ताओं ने कहा है कि
“हर बार की तरह छोटे अफसरों को बलि का बकरा बनाकर बड़ी मछलियों को छोड़ देना अब नहीं चलेगा।”
📣 अखबार की अपील:
अगर वाकई हम चाहते हैं कि जनता का टैक्स जनता के भले में लगे, तो ऐसे मामलों में
पारदर्शिता, निष्पक्ष जांच और जिम्मेदारों की पहचान जरूरी है – चाहे वह कोई भी हो।
🖋 रिपोर्ट:बुलंद सोच- संवाददाता