मध्यप्रदेश सरकार ने 27% OBC आरक्षण को कानूनी वैधता दिलाने के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी। इस दौरान सरकार ने लगभग तीन करोड़ रुपये खर्च किए — सबसे अधिक भुगतान सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल को किया गया।
By Buland Soch News | 30 जुलाई 2025
OBC आरक्षण की संवैधानिक वैधता को लेकर मध्यप्रदेश सरकार की ओर से लड़ी गई कानूनी लड़ाई अब चर्चा में है — कारण है इस केस पर हुए भारी-भरकम खर्च। विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में सरकार ने स्वीकार किया कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने के लिए अब तक कुल 2.92 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
मुख्य खबर (Body – महत्वपूर्ण से सामान्य तथ्यों की ओर)
🔹 सुप्रीम कोर्ट में सबसे ज्यादा खर्च
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से पैरवी करने वाले सॉलिसिटर जनरल को ₹1.73 करोड़ से अधिक का भुगतान किया गया। यह राशि वर्ष 2021 से 2024 के बीच अलग-अलग चरणों में दी गई।
🔹 हाईकोर्ट में भी करोड़ों खर्च
वहीं मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के महाधिवक्ता (Advocate General) और उनकी लीगल टीम को ₹1.19 करोड़ का भुगतान हुआ। यह खर्च भी 2021 के बाद से OBC आरक्षण मामले में हुई सुनवाई से जुड़ा है।
🛫 चार्टर्ड फ्लाइट से दिल्ली भेजे गए वकील
वर्ष 2021 में तत्कालीन महाधिवक्ता शशांक शेखर को चार्टर्ड फ्लाइट से दिल्ली भेजा गया, ताकि वे सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रख सकें। इस विशेष विमान यात्रा पर ₹8.31 लाख खर्च किए गए — यह राशि भी कुल खर्च का हिस्सा है।
अब भी अधूरी जानकारी
विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार ने अभी यह साफ नहीं किया है कि:
- सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में कुल कितनी पेशियाँ हुईं
- किन-किन तारीखों पर सरकारी वकील उपस्थित नहीं हो सके
सरकार ने जवाब में कहा कि इन सूचनाओं को अब भी संकलित किया जा रहा है।
OBC आरक्षण की पृष्ठभूमि
सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण देने का निर्णय लिया था, जिसे लेकर हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं। जब हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली, तब मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। यह मुद्दा न केवल सामाजिक न्याय से जुड़ा है, बल्कि अब इस पर हुए सरकारी खर्च को लेकर भी बहस शुरू हो गई है।
OBC आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सरकार ने भले ही सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़ी हो, लेकिन 2.92 करोड़ रुपये खर्च होने की बात सामने आने के बाद पारदर्शिता और बजट की प्राथमिकताओं पर सवाल उठने लगे हैं।
आम नागरिक और विपक्ष दोनों यह जानना चाहेंगे कि क्या यह खर्च जनहित में उचित और न्यायपूर्ण साबित होगा — या यह भी राजनीति का एक और महंगा अध्याय बनकर रह जाएगा।