1940 के दशक में बनी बैजू धर्मशाला, जिसे रीवा में ‘विंध्य का हवा महल’ कहा जाता है, अब मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग की नजर में सांस्कृतिक विरासत के रूप में संरक्षित होने जा रही है। रीजनल टूरिज्म कॉन्क्लेव के बाद टूरिज्म बोर्ड ने इसके संरक्षण के लिए जिला प्रशासन को पत्र भेजा है।
By Buland Soch News | 30 जुलाई 2025, रीवा (मध्यप्रदेश)
रीवा, मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक भूमि, जहां इतिहास और संस्कृति हर ईंट में सांस लेती है, वहीं स्थित है एक ऐसी इमारत जो अब तक छाया में थी, लेकिन अब आने वाले समय में मध्यप्रदेश पर्यटन की नई पहचान बनने जा रही है — बैजू धर्मशाला, जिसे लोग ‘विंध्य का हवा महल’ के नाम से जानते हैं।
यह इमारत 1940 के दशक में सेठ बैजनाथ द्वारा बनवाई गई थी। बताया जाता है कि राजस्थान के कारीगरों द्वारा तैयार की गई इस धर्मशाला की वास्तुकला किसी महल से कम नहीं। इसकी नक्काशी, हवेलीनुमा बनावट और अंदरूनी गलियारों की बनावट इसे एक अलग ही पहचान देती है।
इतिहास से जुड़ी सांस्कृतिक विरासत
बैजू धर्मशाला सिर्फ एक रुकने की जगह नहीं रही, बल्कि यह दशकों तक यात्रियों, साधु-संतों और रीवा आने वाले तीर्थयात्रियों का प्रमुख आश्रय स्थल रही है। कई सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों की यह साक्षी भी रही है। यह इमारत रीवा शहर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में आज भी ज्यों की त्यों खड़ी है।
पर्यटन विभाग की पहल: संरक्षण की ओर एक कदम
हाल ही में संपन्न हुए रीजनल टूरिज्म कॉन्क्लेव के बाद यह निर्णय लिया गया कि रीवा की ऐतिहासिक विरासतों को संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाएगा। उसी कड़ी में मध्यप्रदेश टूरिज्म बोर्ड ने बैजू धर्मशाला को संरक्षित करने के लिए जिला प्रशासन को आधिकारिक पत्र भेजा है।
सूत्रों के अनुसार, इस धरोहर को एक हेरिटेज टूरिज्म स्पॉट के रूप में विकसित करने की योजना है। इसके तहत भवन की मूल संरचना को बनाए रखते हुए मरम्मत, सौंदर्यीकरण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की संभावनाएं तलाशी जाएंगी।
भविष्य की योजना: इतिहास से पर्यटन तक
पर्यटन विभाग की योजना है कि इसे स्थानीय और बाहरी पर्यटकों के लिए एक कल्चरल हब के रूप में तैयार किया जाए। यहां विरासत से जुड़े इवेंट्स, कला प्रदर्शनियाँ, लोक संस्कृति और स्थापत्य कला के प्रदर्शन आयोजित हो सकते हैं। साथ ही, यह स्पॉट रीवा के हेरिटेज ट्रेल में एक प्रमुख स्थान भी पा सकता है।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
स्थानीय नागरिकों और इतिहास प्रेमियों में इस पहल को लेकर उत्साह है। उनका मानना है कि बैजू धर्मशाला को यदि सही रूप में संरक्षित और प्रस्तुत किया जाए, तो यह पर्यटन और सांस्कृतिक गौरव दोनों को बढ़ावा दे सकती है।
जब इतिहास की परतों में दबे धरोहरों को फिर से सहेजा जाता है, तो वे केवल इमारतें नहीं रहतीं — वे एक कहानी कहती हैं। रीवा की बैजू धर्मशाला अब सिर्फ अतीत नहीं, बल्कि भविष्य की पहचान बनने की ओर अग्रसर है।