मध्यप्रदेश की सरकारी विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक ढांचे का अभूतपूर्व पतन— 5 यूनिवर्सिटियों में एक भी असिस्टेंट प्रोफेसर नहीं, 59% लाइब्रेरी अधूरी, और छात्र पढ़ाई से वंचित।
Buland Soch News डेस्क | 29 जुलाई 2025, मंगलवार
कभी ज्ञान और संस्कृति की भूमि कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में आज शिक्षा व्यवस्था खुद आईसीयू में है। सरकारी यूनिवर्सिटियों की हालत ऐसी हो चुकी है कि कई जगह शिक्षक ही नहीं हैं, लाइब्रेरी अधूरी है, और छात्र बिना पढ़े परीक्षा देने को मजबूर हैं।
जहाँ एक ओर प्राइवेट यूनिवर्सिटियों का साम्राज्य फैलता जा रहा है, वहीं सरकारी शिक्षा संस्थानों का बुनियादी ढांचा चरमराने की कगार पर पहुंच गया है।
5 सरकारी यूनिवर्सिटियों में एक भी असिस्टेंट प्रोफेसर नहीं
राज्य उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश की पांच प्रमुख सरकारी यूनिवर्सिटियों में एक भी नियमित असिस्टेंट प्रोफेसर नहीं है।
प्रदेशभर में कुल 4,151 स्वीकृत टीचिंग पदों में से 74% पद खाली हैं, यानी करीब 3,072 शिक्षक पद खाली हैं।
ये पाँच यूनिवर्सिटियाँ हैं:
- पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय (रायपुर)
- जीवाजी विश्वविद्यालय (ग्वालियर)
- बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय (भोपाल)
- देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (इंदौर)
- रीवा विश्वविद्यालय
59% लाइब्रेरियाँ बिना लाइब्रेरियन के
राज्य की 26 विश्वविद्यालयों में से 59% लाइब्रेरीज़ में कोई लाइब्रेरियन नहीं है।
छात्रों को पुराने या अप्रासंगिक किताबों के सहारे पढ़ाई करनी पड़ रही है। डिजिटल लाइब्रेरी और रिसर्च जर्नल्स की सुविधाएँ नगण्य हैं।
सरकार का तर्क: अतिथि शिक्षकों से पढ़ाई ‘ठीक’ चल रही है
राज्य सरकार की ओर से उच्च शिक्षा मंत्री ने बयान दिया कि “अतिथि शिक्षक के ज़रिए पढ़ाई अच्छे से चल रही है”।
लेकिन हकीकत ये है कि इन अतिथि शिक्षकों को न नीयमित वेतन मिलता है और न ही स्थायित्व, जिससे पढ़ाई की गुणवत्ता और निरंतरता पर सीधा असर पड़ता है।
छात्रों की शिकायतें: ना टीचर, ना पढ़ाई, ना किताबें
Buland Soch News की टीम द्वारा कई विश्वविद्यालयों के छात्रों से बात की गई।
कुछ प्रमुख प्रतिक्रियाएं:
- “पूरे सेमेस्टर में सिर्फ 20-25 क्लास ही हुईं।”
- “लाइब्रेरी में किताबें हैं, लेकिन वो 10 साल पुरानी हैं।”
- “कोर्स पूरा नहीं हुआ, फिर भी परीक्षा हो गई।”
दूसरी ओर प्राइवेट यूनिवर्सिटियाँ फल-फूल रहीं
प्रदेश में 50 से ज़्यादा प्राइवेट यूनिवर्सिटियाँ कार्यरत हैं, और हर साल एक नई यूनिवर्सिटी खुल रही है।
इनका कोर्स स्ट्रक्चर, फीस, इन्फ्रास्ट्रक्चर तो है, लेकिन पारदर्शिता और गुणवत्ता अक्सर सवालों के घेरे में रहती है।
इस असंतुलन के कारण छात्र और अभिभावक बड़ी फीस चुकाने को मजबूर हैं।
विधानसभा में उठा मुद्दा, लेकिन समाधान नहीं
हाल ही में हुए मानसून सत्र में विपक्ष ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया।
विधायकों ने पोस्टर लहराए, नारेबाजी की, लेकिन सरकार की तरफ से कोई ठोस समाधान सामने नहीं आया।
मध्यप्रदेश की सरकारी उच्च शिक्षा व्यवस्था आज एक गहरे संकट से गुजर रही है।
जहाँ एक ओर छात्रों के सपने अधूरे रह जाते हैं, वहीं दूसरी ओर प्राइवेट शिक्षा का व्यापार तेज़ी से बढ़ रहा है।
सरकार को अब अतिथि शिक्षकों पर नहीं, स्थाई नियुक्तियों और संसाधनों पर ध्यान देना होगा।