एक साल की सोशल मीडिया मुहिम, सांसद के विवादित बयान और Buland Soch की रिपोर्टिंग के बाद सीधी के खड्डी खुर्द गांव तक सड़क का काम शुरू हुआ। अब गर्भवती महिलाएं सुरक्षित अस्पताल पहुंच सकेंगी।
रिपोर्ट: Buland Soch संवाददाता | 21 जुलाई 2025
मध्यप्रदेश के सीधी जिले के बगैया टोला (ग्राम खड्डी खुर्द) में सड़क निर्माण का कार्य आखिरकार शुरू हो गया है।
यह वही गांव है जहाँ एक साल से अधिक समय तक सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर लीला साहू सड़क की मांग को लेकर वीडियो और पोस्ट के माध्यम से लड़ाई लड़ रही थीं।
अब गांव में जेसीबी और रोलर की गूंज सुनाई दे रही है — और सबसे अहम बात, अब एंबुलेंस सीधे गांव के घर तक पहुंच सकेगी।
सड़क निर्माण शुरू, राहत की उम्मीद
- सीधी जिले के रामपुर नैकिन विकासखंड के खड्डी खुर्द गांव में सड़क निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया है।
- सड़क बगैया टोला से गजरी मार्ग तक बनाई जा रही है।
- ग्रामीणों के अनुसार, बीते दो दिनों से जेसीबी और रोलर कार्य में जुटे हैं।
👩⚕️ मामला सिर्फ सड़क का नहीं, महिला स्वास्थ्य का था
- गांव में 6 महिलाएं गर्भवती थीं। एंबुलेंस न पहुंच पाने के कारण उन्हें अस्पताल तक पहुँचाने में गंभीर मुश्किलें थीं।
- कई बार मरीजों को पीठ पर लादकर ले जाया गया, जिससे स्वास्थ्य जोखिम और मातृत्व संकट गहराया।

📲 सोशल मीडिया से शुरू हुई जमीनी लड़ाई
- लीला साहू ने पिछले एक साल से वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर सड़क की बदहाली को दिखाया।
- उन्होंने पीएम, सीएम और जिले के अधिकारियों तक अपनी बात पहुंचाई — #हमारे_गांव_को_सड़क_दो जैसे टैग ट्रेंड करने लगे।
🎙️ विवादित बयान ने बढ़ाई संवेदनशीलता
- 2024 में सीधी सांसद राजेश मिश्रा ने एक वायरल बयान में कहा था:
“डिलीवरी से पहले एंबुलेंस भेजकर उठा लेंगे।” - इस बयान की चौतरफा आलोचना हुई, और मामले को राष्ट्रीय मीडिया ने भी कवर किया।
📅 मामले की टाइमलाइन:
- जून 2023: लीला साहू ने पहली बार सड़क की वीडियो पोस्ट की।
- जनवरी 2024: सांसद का विवादित बयान वायरल हुआ।
- मार्च 2024: स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन सौंपा गया।
- जुलाई 2025: सड़क निर्माण कार्य शुरू हुआ।
6. निष्कर्ष (Conclusion):
बगैया टोला में सड़क बनना किसी सामान्य विकास कार्य से कहीं ज्यादा है।
यह एक सामाजिक चेतना, महिला सुरक्षा और लोकतांत्रिक अधिकारों की जीत है।
लीला साहू की यह मुहिम बताती है कि जब एक आम नागरिक सवाल उठाता है और मीडिया उसका साथ देता है, तो व्यवस्था को झुकना पड़ता है।
अब यह ज़रूरी है कि यह केवल एक अपवाद न बने — बल्कि ऐसे हजारों गाँवों तक विकास की सड़क पहुंचे, जहाँ अब भी आवाज़ें दब जाती हैं।