Saturday, November 8, 2025
HomeMP News (मध्यप्रदेश समाचार)पेंट से पुता भविष्य: शहडोल के सरकारी स्कूलों में रंग से ज़्यादा...

पेंट से पुता भविष्य: शहडोल के सरकारी स्कूलों में रंग से ज़्यादा घोटाले की चमक!

रिपोर्ट: Buland Soch News डेस्क | स्थान: शहडोल, मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश के शहडोल जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने सरकारी तंत्र की रंग-बिरंगी करतूतों को फिर से उजागर कर दिया है। मामला सरकारी स्कूलों की मरम्मत और पेंटिंग से जुड़ा है, लेकिन कहानी इतनी साधारण नहीं — बल्कि बेहद चौंकाने वाली है। यहां रंग से ज़्यादा पैसा बहाया गया, और दीवारों से ज़्यादा मजदूरों की गिनती कर दी गई।

कितना रंग? कितना खर्च?

राजा कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और मिडिल स्कूल परसवाड़ा, ब्यौहारी क्षेत्र — इन दो स्कूलों में कथित रूप से केवल 4 लीटर पेंट के लिए 168 मजदूर और 65 मिस्त्री लगाए गए। इसका कुल खर्च बना ₹1,06,984। वहीं 20 लीटर पेंटिंग कार्य में 275 मजदूर और 150 मिस्त्री तैनात हुए और उसका बिल बना ₹2,31,650। यानी अगर मजदूरों की गिनती करें तो ये पूरा काम NASA के मिशन से भी भारी प्रतीत होता है!

यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि इतनी कम मात्रा में पेंट के लिए इतनी बड़ी संख्या में श्रमिकों का कोई औचित्य नहीं है। सामान्य गणना के अनुसार, एक पेंटर औसतन एक दिन में 10-12 लीटर पेंटिंग कर सकता है। लेकिन यहां जो मजदूर लगाए गए, उनकी संख्या उस औद्योगिक यूनिट से भी ज़्यादा थी, जहां एयरक्राफ्ट तैयार होते हैं।

रंग से ज़्यादा चालाकी?

ठेकेदार सुधाकर कंस्ट्रक्शन, DEO (जिला शिक्षा अधिकारी) और प्राचार्य की मिलीभगत की आशंका इस पूरे प्रकरण में गहराती जा रही है। सूत्रों के अनुसार, काम के नाम पर सरकारी बजट का दुरुपयोग हुआ, जिसमें मजदूरी की आड़ में भारी भ्रष्टाचार छिपा हुआ है। और हैरानी की बात ये है कि अभी तक किसी भी अधिकारी पर सख्त कार्रवाई की कोई खबर नहीं है।

दीवारें चमकाईं, शिक्षा धुंधलाई

स्कूल की दीवारें तो नई पुताई में चमक उठीं, लेकिन इन दीवारों के पीछे पढ़ रहे बच्चों की शिक्षा का क्या? जिन बच्चों को एक ढंग की रोटी तक नहीं मिलती, उनके लिए ये ‘VIP दीवारें’ कैसी प्राथमिकता बन गईं? कई स्थानों पर बच्चों को मिड-डे मील में पर्याप्त भोजन तक नहीं मिल पाता — लेकिन रंगाई में लाखों खर्च करना प्राथमिकता है?

जनता पूछे सवाल…

  • अगर वाकई इतने मजदूर लगे थे, तो वे कहां से लाए गए?
  • क्या शिक्षा विभाग ने इनकी उपस्थिति और कार्य सत्यापित की?
  • पेंट की वास्तविक लागत कितनी थी?
  • सबसे बड़ा सवाल — इन स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता का क्या हुआ?

शिक्षा व्यवस्था या रंग मंच?

यह मामला सिर्फ वित्तीय भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की प्राथमिकताओं पर चोट है। ये दर्शाता है कि जब बच्चों की ज़रूरत किताबें, शिक्षक और संसाधन होते हैं — तब विभाग दीवारें चमकाने में जुटा होता है। और जब सवाल उठते हैं, तो या तो जांच बिठा दी जाती है या फाइलों में मामला गुम कर दिया जाता है।

निष्कर्ष:

इस पूरे प्रकरण ने यह साफ़ कर दिया है कि शहडोल जैसे जिले जहां सैकड़ों स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, वहां “पेंट और पॉलिश” प्राथमिकता बन चुके हैं, और शिक्षा की मूल आत्मा — “ज्ञान और अवसर” — हाशिए पर जाती दिख रही है।

Buland Soch News यह सवाल पूछता है:

“अगर दीवारें चमकाने से बच्चों का भविष्य उज्जवल हो जाता, तो नेताजी के बच्चे भी सरकारी स्कूल में पढ़ते!”

अब ज़रूरत है एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की — ताकि इस ‘रंग महोत्सव’ में डूबे भ्रष्टाचारियों को जवाबदेह ठहराया जा सके।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments